Karpuri Thakur:जननायक ‘कर्पूरी ठाकुर’ को वर्ष 2024 में देश का सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न, प्रदान किया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन को एक स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक के रूप में शुरू किया था और फिर दो बार बिहार के उपमुख्यमंत्री भी रहे हैं। इसके अलावा, कर्पूरी ठाकुर कई दशकों से विधायक और विरोधी पक्ष के नेता रहे हैं।
उनकी लोकप्रियता और गरीबों की आवाज बनने के कारण उन्हें जीते जी जननायक की उपाधि मिली। भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती इस वर्ष मनाई जा रही है। अब हम जननायक कर्पूरी ठाकुर की उपलब्धियों और उनके जीवन का विस्तार जानेंगे।
कौन थे कर्पूरी ठाकुर?
बिहार की सियासत में कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक न्याय की चेतना फैलाने वाला नेता माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर एक आम नाई परिवार में पैदा हुए थे। माना जाता है कि उन्होंने पूरी जिंदगी कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना राजनीतिक मुकाम हासिल किया।
इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान कई प्रयासों के बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सका।
1970 और 1977 में मुख्यमंत्री बने थे कर्पूरी ठाकुर
1970 में, कर्पूरी ठाकुर पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को वह पहली बार राज्यपाल बने। उनका पहला कार्यकाल सिर्फ 163 दिन था। 1977 की जनता लहर में जनता पार्टी ने जीत हासिल की, लेकिन कर्पूरी ठाकुर फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बने।
वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। इसके बाद भी, महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में, उन्होंने समाज के पिछड़े लोगों की सेवा की।
बिहार में मैट्रिक तक शिक्षा मुफ्त थी। वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी बोलना अनिवार्य कर दिया गया। अपने कार्यकाल में, उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और अतिपिछड़ों के लिए बहुत कुछ किया, जिससे बिहार की सियासत बदल गई। कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक शक्ति में जबरदस्त वृद्धि हुई और वे बिहार की राजनीति में समाजवाद का प्रमुख चेहरा बन गए।
बिहार में समाजवाद की राजनीति कर रहे नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर और लालू प्रसाद यादव के ही शागिर्द हैं। लालू और नीतीश ने जनता पार्टी के दौरान कर्पूरी ठाकुर से सीख ली।
यही कारण है कि लालू यादव ने बिहार की सत्ता में आने पर कर्पूरी ठाकुर के कार्यों को आगे बढ़ाया। नीतीश कुमार ने भी बहुत पिछड़े समुदायों के लिए बहुत कुछ किया है।
चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 1988 में कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु हो गई, लेकिन इतने साल बाद भी वह बिहार के कमजोर और बहुत कमजोर मतदाताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। गौरतलब है कि बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की संख्या लगभग 52% है।
यही कारण है कि हर राजनीतिक दल अपनी सत्ता कायम करने के लिए कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस ने 2020 में अपने घोषणापत्र में “कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र” स्थापित करने की घोषणा की थी।
कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु कैसे हुई?
दिल का दौरा पड़ने से हुआ निधन
कर्पूरी ठाकुर कई दशकों तक बिहार की राजनीति का अहम हिस्सा रहे। इसके साथ ही वह गरीब-गुरबों की आवाज बने। वहीं अपने जीवन काल में ही उन्हें जननायक की उपाधि से सुशोभित किया गया। कर्पूरी ठाकुर का दिल का दौरा पड़ने से 17 फरवरी, 1988 को 64 वर्ष की आयु में निधन हो गया। इस वर्ष जननायक कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती मनाई जाएगी।